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मान. श्री राजेंद्र जी अ. भा. सह प्रमुख (धर्म जागरण ) जगत गुरु गद्दीनशीन पूज्य श्री विजय गुरु जी, पूज्य श्री उत्तम गुरु जी |
परम पूज्य गुरू घासीदास जी जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी रहा करते थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। उन्होंने सतनाम पंथ की स्थापना की घोषणा की। गुरू घासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया।
गुरु घासीदास जी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा, और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है। गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे।
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जगत गुरु गद्दीनशीन पूज्य श्री विजय गुरु जी, पूज्य श्री उत्तम गुरु जी राजमहंत सांवलराम डाहरे (विधायक अहिवारा) |
गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार लगभग 4 लाख लोग उस वक्त सतनाम पंथ से थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है। गुरू घासीदास जी के अंतरध्यान होने के पष्चात उनके सतनाम आंदोलन को संचालित करने का कार्य गुरू बालकदास जी ने किया।ं अगर राजा गुरू बालकदास जी को सतनामी समाज के संविधान निर्माता कहे तो अतिसयोक्ती नही होगा। गुरू जी समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिये गाँव-गाँव में भंडारी, छड़ीदार, जैसे सम्मानित पदो का चुनाव किये ताकि प्रत्येक गाँव में सतनाम धर्म के रिती-रिवाजो के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान जैसे शादी-ब्याह, मरणी-दशगात्र जैसे समाजिक क्रिया क्रम सुगमता से किया जा सके। साथ ही महंत, राजमहंत जैसे सर्वोच्च सम्मानीय पदो का भी चुनाव योग्यता और समाजिक अनुभव को आधार मानते हुये किये इससे यह हुआ कि पुरा समाज गुरू से जुड़े रहे। दुसरी तरफ गुरू जी के बड़े भाई अध्यात्मीक गुरू के नाम से जाने, जाने वाले गुरू अमर दास जी ने सतज्ञान और सतमहिमा को आधार मानते हुये लोगो को सतनाम से जोड़ने का अनुकरणीय कार्य किये। जैतखाम, चैका पूजा, गुरू गद्दी, पंथी आदि के माध्यम से, साथ ही रामत, रावटी करके भी समाज को जागृत करने के लिये गुरूजनो ने अपना सारी ताकत झोक दिये जिसका नतीजा यह निकला कि समाज में आपसी एकता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना लोगो की मन में कुट-कुट कर समाहित होने लगी।
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जगत गुरु गद्दीनशीन पूज्य श्री विजय गुरु जी, पूज्य श्री उत्तम गुरु जी |
गुरू बालकदास जी एवं गुरू अमरदास जी के जीवन चरित्र को जाने समझे बिना उनके षौर्य शक्ति का उचित आकलन नही किया जा सकता, गिरौदपुरी, भंडारपुरी, तेलासी, खड़ुवा, चटुवा, खपरी, कुँआ बोड़सरा, कुटेला, पचरी आदि धामो का इतिहास जो आज भी लोगो के जबान में यथावत है उन सच्ची घटनाओ को लिपी बद्ध करके हमें अपने गुरू जनो के अद्भुत कार्य को सम्मानित करना होगा जिसके द्वारा हमारे आने वाले पिढ़ी भी हमारे समाज की सच्ची गौरव गाथा को जान सके। यह कार्य हम सभी पढ़े लिखे साथियों का फर्ज है जिसे पूरा करना ही होगा। साथियों कानूनी रूप से संविधान में हमारे सतनाम धर्म को कोई अलग स्थान नही दिया गया है बल्कि हिन्दू धर्म के साथ जोड़ा गया है, जिसका हमारे सतनाम धर्म के अनुयायी पालन करते आ रहे है। अंग्रेजों ने हमारे बीच मतभेद पैदा करने के लिए हमे ऐसे जाति के अंतर्गत रखा है जिसका नाम तक लेने में सतनामी अपने आपको अपमानित महसुस करता है और इसी लिये स्वतंत्र जाति बनाने के लिये सन् १९२६ गुरूओं के द्वारा प्रयास किया गया।
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मान. श्री राजेंद्र जी अ. भा. सह प्रमुख (धर्म जागरण )जगत गुरु गद्दीनशीन पूज्य श्री विजय गुरु जी, पूज्य श्री उत्तम गुरु जी राजमहंत सांवलराम डाहरे (विधायक अहिवारा) |
सतनामी जाति कि मान्यता के लिये गुरू अगमदास साहेब, राजमहंत रतिराम एवं राजमहंत श्री नैनदास महिलांग जी के द्वारा सी. पी. बरार के गवर्नर सर मान्टेग्यू बटलर से आदेशित पारित करवाया गया। सभी जानते है बिना सबूत दिये कोई आसानी से यह कार्य नही करवाया गया होगा। उसके बावजूद भी संविधान में हमें हिन्दू ही माना गया है।