हे मानव समाज,
यह शरीर नाशवान है, जन्म लेता है, जीता है और अंत में मर जाता है, दुनिया वाले उसे भूल जाते हैं, परंतु जो व्यक्ति असत्य को त्याग कर एवं सत्य को अंगीकार कर लोक मंगल से युक्त लोकहित में सार्थक कार्य सम्पादित करता है वह इस संसार में अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। लोकहित में जन जागरण का कार्य भले ही कठिन हो परंतु पीछे पग धरने में उससे बड़ी कायरता है, सिर्फ अंधभक्ति करने से ही मानव समाज का कल्याण नहीं हो सकता। अतः हम सब मिलकर लोकहित में ऊंच-नीच एवं स्वार्थ की भावनाओं से परे एक ऐसा जाति विहित समाज का निर्माण करें जिसमें शिक्षाद्व ज्ञान, सद्भाव, समभाव एवं आपस में भाईचारे की भावनाओं का समावेष हो।
आईये हम पषुता का त्याग कर मानवता को धारण कर जनहित में अपना कदम बढ़ावें और परम पूज्य गुरू घासीदास जी के लोक मंगलकारी सत उपदेषों को जन-जन तक पहुंचाने के लिये समाज में नव जागरण लाने के प्रयास में जुट जावें इसी अभिलाशा के साथ ..............
सत्येनाकः प्रतपति सत्ये तिश्ठते मेदिनी।
सत्यं चोक्तं परो धर्माः स्वर्गः सत्ये प्रतिश्ठितः।।
अष्वमेध सहस्तं च सत्यं च तुलया घृतक।
अवष्मेध सहंषुद्धि सत्यमेव विषिश्यते।।
(मार्कण्डे 8/41/48)

सत्यमेव जयति नानृतं, सत्येन पन्था वितो देवयानः।
येना क्रमन्त्यृपयोह्याप्त कामा, यत्र सत्सत्यस्य परमं विधानम्।।
(मुण्डकोपनिशद 3/1/3)
सत्यमेव जयति नानृतं, सत्येन पन्था वितो देव यानः।
येना क्रमन्यृपयो हृयाप्त कामा, यत सत्यत्यस्य परमं विधानम्।।
(मुण्डकोपनिशद् 3/1/6)
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