ऐसा माना जाता है कि सतनामी समाज के पूर्वज सम्राट औरंगजेब के हुकुमत से तंग होकर एवं उसेक आदेशानुसार भारत देश के दक्षिण पथ महाकौशल छत्तीसगढ़ में आकर बस गये। किन्तु यहां के जमीदारी, सांमत शाही शासन, रहन-सहन, खान-पान, बोल-चाल, धर्म-संस्कृति, रिति-रिवाज को देखकर, सतनामी समाज के लोग विभिन्न जिलों में अलग-अलग गांव में बसने लगे और अपने सुविधा के लिए मुहल्ला, पारा, नहाने के लिए तालाब में अलग घाट, मृत्यु संस्कार के लिए अलग शमशान घाट बनाकर रहने लगे। पूजा अराधना के लिए अलग गरूद्वारा बनाकर श्वेत धर्म ध्वजा फहराने लगे। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में जाकर सतनामी लोग स्वतंत्रता पूर्वक बसने लगे और अपने इच्छानुसार कृषि योग्य जमीन बनाकर खेती-किसानी करने लगे।
इसी प्रकार सतनामी समाज के लोग छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिला यथा- रायगढ़, सारंगढ़, जांजगीर, कोरबा, बिलासपुर, मुंगेली, बलौदाबाजार, तिल्दा, रायपुर, दुर्ग, कवर्धा, बेमेतरा, राजनांदगांव, बालोद, धमतरी, महासमुन्द, डोंगरगढ़, कांकेर, कोण्डागांव एवं बस्तर में जाकर बस गये एवं स्वतंत्रता पूर्वक रहते हुए काश्तकारी करने लगे। आज इनकी जनसंख्या छत्तीसगढ़ में लगभग 44 लाख से अधिक है।
जनश्रुतियों से पता चलता है कि गुरूघासीदास बाबा जी के ग्यारहवां पीढ़ी पंजाब हरियाणा से आकर छत्तीसगढ़ में बसे उनका पहला पड़ाव जिला बलौदाबाजार के खंड भटगांव में बिंझवार जमीदार के गांव में बस गये। सतनामियों के छत्तीसगढ़ में बसने से पहले यहां मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, ईसाई एवं जैन धर्म का स्थापना हो चुका था इसके फलस्वरूप यहां पर विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर यथा शिव मंदिर, विष्णु मंदिर, हनुमान मंदिर, दुर्गा मंदिर, काली मंदिर एवं अनेक मठ-मंदिर तथा गुरूद्वारा मौजूद था और इसके साथ ही साथ रूढ़ीवाद एवं अंधविश्वास चरम सीमा पर था।
संवत 1787 सन् 1730 को सतखोजनदास जी के 13वां पीढ़ी, मेदनीदास जी भटगांव छोड़कर गिरौदपुरी में छेरा पुन्नी को आकर बस गये।
गिरौदपुरी में मेदनी दास का स्वर्गवास हुआ उनके पुत्र महंगुदास जी के तिसरे पुत्र के रूप में गुरू घासीदास जी का जन्म हुआ। समाज में मान्यता है कि माता अमरौतिन अपने ननकु-मनकु और घासीदास तीनों पुत्र को जन्म देकर 25 वर्ष की आयु में सतधाम (स्वर्ग) को चली गई। उस समय घासीदास जी तीन माह के शिशु थे। महंगुदास दुःखी हो गया उनके दुःख देखकर गिरौदपुर के लोगों ने सलाह मशविरा कर के गांव के सुधाराम रौतिया (गौटिया) की पुत्री कुमारी करूणा से सादी करवाई। सुधाराम काफी बुढ़े हो गये थे। सुधाराम गौटिया मेदनीदास बाबा के साथ संगत किया करते थे। कुमारी करूणा का ननकु-मनकु एवं घासीदास से बेहद लगाव बढ़ गया था। करूणा के दुलार प्यार से तीनों भाई बढ़ने लगे बाबा मंहगुदास का अकेलापन का दुःख बिसर गया। ऐसा माना जाता है कि ननकुदास जी बालपन में ही सतधाम (स्वर्ग) चले गये। मनकुदास एवं घासीदास दोनों भाईयों का वंश विस्तार आज भी मौजूद है।
Jai satnam
ReplyDeleteGood job
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