छत्तीसगढ में सतनामी समाज को मतांतरित करने का खेल बहुत पूराना है, अंग्रेजों के समय राज्य के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में जातिवादी प्रथाएं खुले रूप से चलन में रहा, यही कारण है कि यहां इनकी गीनती दलितों के रूप में की गई। जिसके फलस्वरूप सतनामियों को अनेक भेदभाव व अपमान जनक कार्य करने को विवश होना पड़ा। शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के लिये दर-दर भटकना पड़ा। धर्मांतरण के लिये यह परिस्थिति एक महत्वपूर्ण कारण बनी। सतनामी समाज गुरू परंपरा को मानता है और मूर्ती पूजा का विरोध करता है। हिन्दू समाज में व्याप्त कुप्रथा जैसे बलीप्रथा, सतीप्रथा, पितर पुजा, यज्ञ, हवन ईत्यादि का विरोध कर निर्गुण उपासना करने पर विश्वास करते है।
अंग्रेज लेखक चाॅड एम. बउमन ने लिखा है कि ‘सबसे पहले सन् 1886 में जब वह पहली बार छत्तीसगढ़ आया था तब बिलासपुर डिविजन में एक भगवानी सतनामी नाम का ब्यक्ति एक वर्ष पूर्व 1885 मंे ही धर्मांतरित हो चूका था। साल भर बाद हीरालाल सतनामी ने सतनामपंथ को छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया और उसने अपने पांच मित्रों को भी धर्म परिवर्तन कराया‘। अंग्रेजों ने यहां पर प्रत्यक्ष इंजिलवाद, मिशन स्कूल, मिशन अस्पताल और अप्रत्यक्ष इंजिलवाद के माध्यम से भोले भाले सतनामियों को विश्वास में लिया और सत्यनाम को मानने वालों, सत्य तो ईसा मसीह है! कह कर उनके बीच उलझन पैदा किये और धर्मांतरण करते चले गये। तब से अब तक सतनामियों का मतांतरण जारी है। अभावग्रस्त ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरियों ने इस समाज का धर्मांतरण व मतांतरण किया है।
सतनामी समाज वर्तमान में संक्रमण काल से गजर रहा है यहां कुछ सतनामी समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी अपने को हिन्दू मानने से इंकार करते है जबकी समाज के धर्म गुरू, जगत गुरू गोसाई अपने को हिन्दू ही मानते है।
सतनामियों की कूल संख्या :-
छत्तीसगढ़ में 146 ब्लाक मुख्यालय है। 2001 की जनगणना में छ.ग. प्रांत में अनु.जाति की संख्या 24.19 लाख दर्ज है, जो कि कूल जनसंख्या का 11.6 प्रतिशत है। सन् 1901 की जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज की संख्या 4.32.207, (चार लाख बत्तीस हजार दो सौ सात) दर्ज की गई थी जो कि 2001 की जनगणना में लगभग 44 लाख से अधिक है। ऐसा माना जाता है कि सतनामी समाज का वर्तमान में 45 प्रतिशत से अधिक की अबादी अन्य धर्म में मतांतरित हो चुकी है। हालांकि अधिकांश संख्या रिकार्ड में अपना धर्म हिन्दू ही लिखते है लेकिन मन से वे पूरी तरह मतांतरित है। ईसाई धर्म में इनकी गिनती क्रिप्टो क्रिश्चन के रूप में की जाती है।
सतनाम परियोजना कब और कैसे शुरू हुई :-
विगत वर्षों के निरंतर चिंतन के बाद छत्तीसगढ़ प्रांत के जिस समाज में सर्वाधिक मतांतरण हो रहे है ऐसे समाज को चिन्हांकित कर परियोजना का गठन किया गया। प्रांत में सतनामी समाज पूरी तरह से विधर्मियों की मकड़ जाल में फंस चुका है। समाज को संगठित करने व मतांतरण के कुचक्र से मुक्त कराने व पुनः हिन्दू धर्म में परावर्तन करने हेतु धर्मजागरण समन्वय विभाग द्वारा सन् 2004 से सतनाम परियोजना का संचालन किया जा रहा है।
परियोजना ऐसे समय में बनी जब सतनामी समाज के लोग स्वयं को हिन्दू मानने से इंन्कार करते थे और वे अपने आप को अन्य धर्म के अनुयायी मानने लगे थे तथा हिन्दू धर्म से अलग होने हेतु भारत शासन के समक्ष अलग धर्म की मांग करने प्रयासरत है। परियोजना को प्रारंभिक काल में कोई महत्वपूर्ण सफलता नही मिली पर इसके दूरगामी परिणाम सामने आयेंगे इसमें कोई दो राय नही है। धर्मजागरण के प्रांत प्रमख श्री राधेश्याम जलक्षत्री के कुशल मार्गदर्शन और धर्मजागरण प्रांत संयोजक श्री अवधेश दुबे जी की सतनामी समाज को ईसाई मक्त करने की दृढ संकल्प ने एवं धर्मजागरण प्रांत परियोजना प्रमख श्री ओम प्रकाश पुजारी जी द्वारा किये जा रहे निःश्वार्थ सहयोग के कारण सतनाम परियोजना समाज में नया विश्वास जगाने में सफलताएं प्राप्त की है। इनके निरंतर प्रवास, समाज में समरस्ता का भाव जगाने व ब्यवहार में उतारने के लिये अद्भूत मिसाल है। धर्मजागरण के अ.भा. सह प्रमुख श्री राजेन्द्र जी की परिकल्पना से प्रांत में समरस्ता यात्रा निकालने की योजना बनाई गई, इस हेतु वर्ष 2004, 2006 एवं 2011 में परम पूज्य गुरू घासीदास जी की सतनाम संदेश यात्रा निकाली गई। 2012 में जिला सह यात्रा निकालने की योजना बनी जिसमें जिला सारंगढ़ ईकाई ने चार दिन की सतनाम संदेश यात्रा निकाली और इस वर्ष 2014 में भी प्रांत स्तरीय भव्य सतनाम संदेश यात्रा निकालने की योजना बनी है। इस प्रकार के कार्यक्रम से समाज में नव जागरण होता है और समरस्ता व भाई-चारे का निर्माण होता ही है साथ ही हिन्दुत्व भाव को समझने में लोगों ने रूची दिखाई है। हालांकि आज भी परियोजना से जुड़े कार्यकर्ताओं को समाज अपना कार्यकर्ता नही मानता है अपितु इसे संघ व बी.जे.पी. का कार्यकर्ता मानकर सामाजिक गतिविधियों से दूर रखते है जिस कारण अनेक परेशानी भी हमारे बीच मुह बाहें खड़ी है और हम संघर्षरत है।
घर वापसी कार्यक्रम :-
विगत वर्ष 2004 से 2010 तक 25 गांव के 274 परिवार, संख्या 822 की घर वापसी, पूर्व केंद्रिय मंत्री एवं बिलासपुर सांसद स्व.श्री दिलीप सिंह जुदेव जी के विभिन्न कार्यक्रमों में की गई।
फरवरी 2011 में पूर्व केंद्रिय मंत्री एवं बिलासपुर सांसद श्री दिलीप सिंह जुदेव ने जिला जांजगीर-चांपा के कांसा ग्राम मंे 10 गांव के 150 परिवार, संख्या 1140 जो ईसाई धर्म में मतांतरित हो चुके थे उन्हे पुनः हिन्दू धर्म में वापस लाये है। जिसमें प्रमुख रूप से ईसाई पास्टर ग्राम अण्डा निवासी नेतराम जाटवर, ग्राम मोहतरा के धनीराम भारद्वाज के साथ राहतबाई, धानबाई, जगबाई, राधिका, मानकी, फूलबाई, नवधा, चित्ररेखा, मिनाबाई एवं सोन कुवंर सहित सैंकड़ों लोगों ने ससम्मान हिन्दू धर्म में घर वापसी की है।
सतनाम संदेश यात्रा का उद्देष्य :-
यात्रा का आकर्षण :-
अंग्रेज लेखक चाॅड एम. बउमन ने लिखा है कि ‘सबसे पहले सन् 1886 में जब वह पहली बार छत्तीसगढ़ आया था तब बिलासपुर डिविजन में एक भगवानी सतनामी नाम का ब्यक्ति एक वर्ष पूर्व 1885 मंे ही धर्मांतरित हो चूका था। साल भर बाद हीरालाल सतनामी ने सतनामपंथ को छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया और उसने अपने पांच मित्रों को भी धर्म परिवर्तन कराया‘। अंग्रेजों ने यहां पर प्रत्यक्ष इंजिलवाद, मिशन स्कूल, मिशन अस्पताल और अप्रत्यक्ष इंजिलवाद के माध्यम से भोले भाले सतनामियों को विश्वास में लिया और सत्यनाम को मानने वालों, सत्य तो ईसा मसीह है! कह कर उनके बीच उलझन पैदा किये और धर्मांतरण करते चले गये। तब से अब तक सतनामियों का मतांतरण जारी है। अभावग्रस्त ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरियों ने इस समाज का धर्मांतरण व मतांतरण किया है।
सतनामी समाज वर्तमान में संक्रमण काल से गजर रहा है यहां कुछ सतनामी समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी अपने को हिन्दू मानने से इंकार करते है जबकी समाज के धर्म गुरू, जगत गुरू गोसाई अपने को हिन्दू ही मानते है।
सतनामियों की कूल संख्या :-
छत्तीसगढ़ में 146 ब्लाक मुख्यालय है। 2001 की जनगणना में छ.ग. प्रांत में अनु.जाति की संख्या 24.19 लाख दर्ज है, जो कि कूल जनसंख्या का 11.6 प्रतिशत है। सन् 1901 की जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज की संख्या 4.32.207, (चार लाख बत्तीस हजार दो सौ सात) दर्ज की गई थी जो कि 2001 की जनगणना में लगभग 44 लाख से अधिक है। ऐसा माना जाता है कि सतनामी समाज का वर्तमान में 45 प्रतिशत से अधिक की अबादी अन्य धर्म में मतांतरित हो चुकी है। हालांकि अधिकांश संख्या रिकार्ड में अपना धर्म हिन्दू ही लिखते है लेकिन मन से वे पूरी तरह मतांतरित है। ईसाई धर्म में इनकी गिनती क्रिप्टो क्रिश्चन के रूप में की जाती है।
सतनाम परियोजना कब और कैसे शुरू हुई :-
विगत वर्षों के निरंतर चिंतन के बाद छत्तीसगढ़ प्रांत के जिस समाज में सर्वाधिक मतांतरण हो रहे है ऐसे समाज को चिन्हांकित कर परियोजना का गठन किया गया। प्रांत में सतनामी समाज पूरी तरह से विधर्मियों की मकड़ जाल में फंस चुका है। समाज को संगठित करने व मतांतरण के कुचक्र से मुक्त कराने व पुनः हिन्दू धर्म में परावर्तन करने हेतु धर्मजागरण समन्वय विभाग द्वारा सन् 2004 से सतनाम परियोजना का संचालन किया जा रहा है।
परियोजना ऐसे समय में बनी जब सतनामी समाज के लोग स्वयं को हिन्दू मानने से इंन्कार करते थे और वे अपने आप को अन्य धर्म के अनुयायी मानने लगे थे तथा हिन्दू धर्म से अलग होने हेतु भारत शासन के समक्ष अलग धर्म की मांग करने प्रयासरत है। परियोजना को प्रारंभिक काल में कोई महत्वपूर्ण सफलता नही मिली पर इसके दूरगामी परिणाम सामने आयेंगे इसमें कोई दो राय नही है। धर्मजागरण के प्रांत प्रमख श्री राधेश्याम जलक्षत्री के कुशल मार्गदर्शन और धर्मजागरण प्रांत संयोजक श्री अवधेश दुबे जी की सतनामी समाज को ईसाई मक्त करने की दृढ संकल्प ने एवं धर्मजागरण प्रांत परियोजना प्रमख श्री ओम प्रकाश पुजारी जी द्वारा किये जा रहे निःश्वार्थ सहयोग के कारण सतनाम परियोजना समाज में नया विश्वास जगाने में सफलताएं प्राप्त की है। इनके निरंतर प्रवास, समाज में समरस्ता का भाव जगाने व ब्यवहार में उतारने के लिये अद्भूत मिसाल है। धर्मजागरण के अ.भा. सह प्रमुख श्री राजेन्द्र जी की परिकल्पना से प्रांत में समरस्ता यात्रा निकालने की योजना बनाई गई, इस हेतु वर्ष 2004, 2006 एवं 2011 में परम पूज्य गुरू घासीदास जी की सतनाम संदेश यात्रा निकाली गई। 2012 में जिला सह यात्रा निकालने की योजना बनी जिसमें जिला सारंगढ़ ईकाई ने चार दिन की सतनाम संदेश यात्रा निकाली और इस वर्ष 2014 में भी प्रांत स्तरीय भव्य सतनाम संदेश यात्रा निकालने की योजना बनी है। इस प्रकार के कार्यक्रम से समाज में नव जागरण होता है और समरस्ता व भाई-चारे का निर्माण होता ही है साथ ही हिन्दुत्व भाव को समझने में लोगों ने रूची दिखाई है। हालांकि आज भी परियोजना से जुड़े कार्यकर्ताओं को समाज अपना कार्यकर्ता नही मानता है अपितु इसे संघ व बी.जे.पी. का कार्यकर्ता मानकर सामाजिक गतिविधियों से दूर रखते है जिस कारण अनेक परेशानी भी हमारे बीच मुह बाहें खड़ी है और हम संघर्षरत है।
घर वापसी कार्यक्रम :-
विगत वर्ष 2004 से 2010 तक 25 गांव के 274 परिवार, संख्या 822 की घर वापसी, पूर्व केंद्रिय मंत्री एवं बिलासपुर सांसद स्व.श्री दिलीप सिंह जुदेव जी के विभिन्न कार्यक्रमों में की गई।
फरवरी 2011 में पूर्व केंद्रिय मंत्री एवं बिलासपुर सांसद श्री दिलीप सिंह जुदेव ने जिला जांजगीर-चांपा के कांसा ग्राम मंे 10 गांव के 150 परिवार, संख्या 1140 जो ईसाई धर्म में मतांतरित हो चुके थे उन्हे पुनः हिन्दू धर्म में वापस लाये है। जिसमें प्रमुख रूप से ईसाई पास्टर ग्राम अण्डा निवासी नेतराम जाटवर, ग्राम मोहतरा के धनीराम भारद्वाज के साथ राहतबाई, धानबाई, जगबाई, राधिका, मानकी, फूलबाई, नवधा, चित्ररेखा, मिनाबाई एवं सोन कुवंर सहित सैंकड़ों लोगों ने ससम्मान हिन्दू धर्म में घर वापसी की है।
सतनाम संदेश यात्रा का उद्देष्य :-
- परमपुज्य गुरू घासीदास जी की 42 अम्रीत वाणीयों को जन जन तक पहुंचाना।
- सतनाम दर्शन को सभी समाज के बीच समरस भाव में लाना।
- धार्मिक सामाजिक जागरण के लिये धर्मांतरण रूके व घर वापसी हो।
- वर्ष 2004 में 12 जिलों पर प्रथम बार सतनाम संदेश यात्रा निकाला गया। इस आयोजन को समाज ने सहर्ष स्वीकार लिया और बढचढ कर कार्यक्रमो में शामील हुये।
- वर्ष 2006 में दुसरी बार उसी मार्ग पर पुनः सतनाम संदेश यात्रा निकाली गई, इस यात्रा में सभी समाज के लोग बड़ी संख्या में उत्साह पूर्वक भाग लिये और समरस भाव से यात्रा का स्वागत किये।
- वर्ष 2011 में यात्रा को भव्यरूप से निकाला गया और 16 जिलों के 62 विकास खण्डों के 5684 गांवों में 1,32,536 महिला एवं पुरूषों से संपर्क किया गया।
- सभी राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक संगठनों की सहभागिता।
- सभी धर्माचारियों, साधु-संतों एवं समाज के बुद्धिजीवियों का विभिन्न स्थानों पर प्रवचन एवं मार्गदर्शन।
- 2011 की यात्रा में लगभग 2000 कि.मी. की दूरी तय किया गया।
यात्रा का आकर्षण :-
- यात्रा आगमन स्थान पर माताएं-बहिने हजारों की संख्या में अपने-अपने हाथों से श्रद्धा भाव से आरती एवं पुजन किया।
- स्कूली छात्र-छात्राएं हजारो की संख्या में मानव श्रृंखला 2-2 कि.मी. तक बनाये रहे और पुष्प वर्षा किये।
- आकर्षक पंथी नृत्य व गोपुर का मनोरम प्रदर्शन।
- सभी जिला केन्द्र, खण्ड केन्द्र एवं नगरिय स्थानों पर भव्य स्वागत, आतिशबाजी, डी.जे. के साथ शोभायात्रा महारैली के रूप में लोगों का हुजूम, उत्साह एवं उमंग में नाचते झूमते हुए, जय घोषों से गुंजता हुआ समस्त नगर/शहर में घुमना। समस्त वातावरण में उत्साह मंगल से प्रफुल्लित दिख रहे थे। नजारा पूरी तरह से दिपावली व दशहरा की यादे दिला रही थी।
- सभी सभाओं में ओजस्वी भाषण एवं संतों की अम्रीत वाणी बरस रहे थे।
- सामुहिक सह भोज का कार्यक्रम सभी स्थानों पर दोपहर एवं रात्री में किया गया।
- सामाजिक समरस्ता का अद्भुत दृश्य आलोकित हो रहे थे।
जय सतनाम
ReplyDeleteअनुकर्णीय व प्रशंसनीय कदम खुंटे जी
ReplyDeleteअपना जय जय सतनाम सत्य के पूजा वाला जय जय सतनाम जय सतनाम भाइयों को जय सपना हम लोग सतनामी समाज के सभी प्रसिद्ध परिजनों को अपनी तरफ से जय जय सतनाम क्या सतनाम
ReplyDeleteयोजना क्या लिखे हो भाई
Satnam dharma ki Jay.
ReplyDeleteSatnami chhalawa ka shikar hai kaptiyo ne hindu bna diya.
Jhoote log ye kyo bhul jate ho 1901 me satnamiyo ki janganna hui thi anusuchit Janti ki nhi?