Wednesday, 16 March 2016

ःः सतनाम धर्म:ः

         सच्चा धर्म वही है जिसमें सबका कल्याण हो, जो किसी को किसी भी तरह से छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच न समझे। जिस धर्म में मानव को मानव नही समझा जाता, उसके साथ अपनत्व का व्यवहार नही किया जाता वह धर्म, धर्म नही बल्कि धर्म के नाम पर अपने स्वार्थ पूर्ती के लिये रचा गया साजिस है। सतनाम् धर्म में ऐसा किसी भी प्रकार की खामियाँ नही दिखती जो हमारे मन में प्रश्न पैदा करे। सतनाम् धर्म का संक्षिप्त में मुख्य विशेषतायें निम्न है।
१. सतनाम धर्म प्रत्येक मानव को मानव का स्थान देता है ।
२. सतनाम धर्म में न कोई छोटा और न कोई बड़ा होता है, इसमें सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है।
३. जो ब्यक्ति सतनाम् धर्म को ग्रहण कर लेता है, उसके साथ उसी दिन से समानता का ब्यवहार जैसे बेटी देना या बेटी लेना प्रारम्भ हो जाता है ।
४. सतनाम् धर्म किसी भी जाति या धर्म का अवहेलना नही करता ।
५. सतनाम् धर्म हमेशा सच्चाई के पथ पर चलने की शिक्षा देता है ।
६. सतनाम् धर्म का प्रतीक चिन्ह जैतखाम है ।
७. सतनाम् धर्म में ७ अंक को शुभ माना जाता है ।
८. सतनाम् धर्म के मानने वाले दिन सोमवार को शुभ मानते है, इसी दिन परम पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का अवतार हुआ था ।
९. सतनाम् धर्म में गुरू गद्दी, सर्व प्रथम पूज्यनीय है ।
१०. सतनाम् धर्म में निम्न बातों पर विशेष बल दिया जाता है:
सतनाम् पर विश्वास रखना ।
जीव हत्या नही करना ।
मांसाहार नही करना ।
चोरी, जुआ से दुर रहना ।
नशा सेवन नही करना ।
जाति-पाति के प्रपंच में नही पड़ना ।
ब्यभीचार नही करना ।
११. सतनाम् धर्म के मानने वाले एक दुसरे से मिलने पर ‘जय सतनाम‘ कहकर अभिवादन करते हैं।
१२. सतनाम् धर्म में सत्यपुरूष पिता सतनाम् को सृष्टि का रचनाकार मानते हैं।
१३. सतनाम् धर्म निराकार को मानता है, इसमें मूर्ती पूजा करना मना है।
१४. सतनाम् धर्म में प्रत्येक ब्यक्ति ‘स्त्री-पुरूष‘ जिसका विवाह हो गया हो, गुरू मंत्र लेना ‘कान फुकाना‘ अनिवार्य है।
१५. सतनाम् धर्म में पुरूष को कंठी-जनेऊ और महिलाओ को कंठी पहनना अनिवार्य है।
१६. सतनाम् धर्म में मृत ब्यक्ति को दफनाया जाता है।
१७. सतनाम् धर्म में पुरूष वर्ग का दशगात्र दश दिन में और महिला वर्ग का नौवे दिन में किया जाता है ।
१८. सतनाम् धर्म में मृतक शरीर को दफनाने के लिये ले जाने से पहले पुरूष वर्ग को पूर्ण दुल्हा एवं महिला वर्ग को पूर्ण दुल्हन के रूप में श्रंृगार करके ले जाया जाता है।
१९. परिवार के कुल गुरू जिससे कान फुकाया ‘नाम पान‘ लिया रहता है साथ ही मृतक के भांजा को दान पुण्य दिया जाता है ।
२०. माताओ को जब पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है तो उसे छः दिन में पूर्ण पवित्र माना जाता है।
२१. सतनाम् धर्म में महिलाओ को पुरूष के जैसा ही समानता का अधिकार प्राप्त है।
२२. सतनाम् धर्म में लड़के वाले पहले लड़की देखने जाते हैं।
२३. सतनाम् धर्म में दहेज लेना या दहेज देना पूर्ण रूप से वर्जित है।
२४. लड़के वाले लड़की पक्ष के परिवार वालो को नये वस्त्र देता है साथ ही दुल्हन को     उसके सारे सृंगार का समान दिया जाता है।
२५. सतनाम धर्म में सात फेरे होते हैं जिसमें दुल्हन, दुल्हे के आगे आगे चलती है।
२६. सतनाम् धर्म में शादी होने पर सफेद कपड़ा पहनाकर तेल चढ़ाया जाता है।
२७. दुल्हे का पहनावा ‘जब बारात जाता है‘ सफेद रंग का होता है । पहले मुख्य रूप से सफेद धोती, सफेद बंगाली और सफेद पगड़ी का चलन था परन्तु आज कल लोग अपने इच्छानुसार वस्त्र का चुनाव कर रहे हैं परन्तु एक बात अवश्य होनी चाहिये कि जब फेरा (भांवर) हो तो सतनाम् धर्म के अनुसार सफेद वस्त्र जरुर पहनना चाहिये ताकि धर्म का पालन हो और शादी सतनाम् धर्म के अनुरूप हो।
२८. दुल्हन के साड़ी व ब्लाउज हल्का पिले रंग का होता है।
२९. सतनाम् धर्म में स्वगोत्र के साथ विवाह करना सक्त मना है।
‘नियम और संस्कार को संक्षिप्त में बताया गया है, परन्तु इतने से ही ज्ञानी जन विस्तृत में समझ सकते हैं‘

No comments:

Post a Comment