वैसे तो यदि सतनामियों के पारंपरिक रीति-रिवाज के विषय में गहनता के साथ लिखा जाये तो वह अपने आप में एक किताब हो सकती है। यहां पर सरसरी तौर पर मोटे-मोटे पारम्परिक रूप से आम सतनामी समाज में जो मान्यताएं हैं उन्हें रेखांकित करने का प्रयास किया है, संभव है इसमें ढेर सारे रीति-प्रथा छुट जायें, किन्तु एक सामान्य तौर तरीका जो देखने सुनने को मिलता है, वह आप सबके समक्ष प्रस्तुत है -
परमपूज्य गुरू घासीदास जी के अंतरध्यान होने के बाद गुरू गद्दी के उत्तराधिकारी पद पर गुरू बालकदास जी के विराजमान होते ही उन्होंने अपने पिता संत शिरोमणी गुरू घासीदास जी के 42 वाणी, 7 उपदेश और 34 अक्षरों के शब्द को साकार करने के लिए प्रयत्न शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले सामाजिक रिति-रिवाजों के लिए एक नियमावली बनाया जो निम्न है:-
नियमावली :-
01. सतनाम धर्म का मूल उद्देश्य है मानव से मानवता का पालन करें।
02. मानव में गुरू वंशजोें को उच्च आदर सम्मान के साथ पूजा करके जगत गुरू के सम्मान में भेंट निछावर देवें। चरण धोकर चरणामृत पावन करें।
03. नाम में सतनाम को ही भजें।
04. सत्य अहिंसा का पालन करें।
05. प्रार्थना पूजा अर्चना, अजर अमर अविनाशी (प्रकृति देव) पांच तत्व का प्रतीक गुरू गद्दी जैतखाम का पूजा करें। अन्य किसी देवता-धामी का पूजा नहीं करना चाहिए।
06. सतनाम धर्म का व्रत पूजा प्रति सोमवार को रहकर शाम को पूजा कर प्रसाद वितरण करके फलाहार करें।
07. सुबह शाम सूर्य का नमन करें, खेतीहार प्रकृति को भजते रहे खेत खलिहान आंगन भवन में सुबह-शाम ज्योत जलाकर मन के मनौती मांग हेतु सतनाम के नाम से जैतखाम के पास झण्डा नीचे संकल्प करके व्रत धारण के साथ अपने जबान से झूठ नहीं बोलना चाहिए जब तक मांग पूरा नहीं हो जाये तब तक सत्य अहिंसा का धारण करना चाहिए।
सात उपदेश:-
01. सत्य अहिंसा को धारण करके सतकर्म करो, परिश्रम और कर्तव्य फल का लाभ उठायें।
02. अंध विश्वास, भ्रम एवं आडम्बर, कर्म में मत फसों।
03. हम एक योनी के है मानव जाति से भेदभाव, छुआछुत मत करो परपंची में मत फंसो।
04. पराई स्त्री को माता मानो व सम्मान करो, अनाचार मत करो।
05. गाय भैंस को हल में मत जोतो, वह भी एक योनी का माता है।
06. किसी भी प्राणी का मांस मत खाओ और जीव हत्या मत करो।
07. षडंत दुर्गन्ध, नशा, चोंगी, शराब, बीड़ी, तम्बाकु, गुडाखु आदि का सेवन मत करो।
छड़ीदार, राजमहंत एवं भण्डारी का कार्य :-
राजा गुरू बालकदास जी ने अपने पिता गुरू घासीदास जी की उपदेशों के तहत पूरे समाज के लिए नियमावली की रचना की जो गावों में छड़ीदार (एक सिपाही) के रूप में सुरक्षित रहेंगे और गुरू गद्दी के स्थान पर बैठने वाले लोगों के बीच से चुनकर गुरू गद्दी स्वीकृती पट्टा लेकर भंडारी पद सुरक्षित रहे और गुरू दक्षिणा को प्रतिवर्ष कंुवार सुदी एकादशी के दिन गुरू गद्दी पर गुरू दक्षिणा जमा करना होगा। जिसका पावती भण्डारी को रखना होगा। और बताना होगा सतनाम धर्म गुरू आदेश नियमावली के साथ क्षेत्र का सुरक्षित रखने के लिए समाज में एकता बनाने के लिए क्षेत्रिय महंत पद नियुक्त किया है सामाजिक रिति-रिवाज को सफल करना व रक्षा करना उनका मूल उद्देश्य है। अगर किसी प्रकार आदेशों का उल्लंघन होता है तो अपने संबंधित राज महंतों के साथ रिपोर्ट पेश करें। गुरू गद्दी तक शिकायत करके निदान कराना राज महंतो का कार्य है। सर्वोच्च पद गुरू वंशज गद्दीनसीन है जो भी निर्णय गुरू देगा वह सर्वमान्य है।
विवाह नियमावली :-
वर कन्या के माता-पिता के मन पसंद एवं कन्या, वर का मन-पसंद आ जाने पर फलदान (सगाई) का कार्यक्रम करना चाहिए दोनों पक्षों के परिवारों के बीच एक सौ एक रूपया सुख के रूप में कन्या के माता-पिता को देना होगा। इसके बाद विवाह को शुभ लग्न में किया जाना चाहिए।
विवाह का लगन मूहर्त के अनुसार बारात लेकर जाना चाहिए। कन्या के लिए भांवर (फेरा) लगन कपड़ा (साड़ी) यथा योग गहना एवं लगन के पूजा सामग्री चावल, 51 बंगला पान के सहित, दहेज में पचहर दाईज कन्या के माता-पिता को देना होता है। और टीकावन के रूप में उपस्थित परिवार तथा गांव-बस्ती निवासी टिकते हैं। छड़ीदार एवं भंडारी के द्वारा एक ढेड़हा-ढेड़हीन के द्वारा विवाह सम्पन्न किया जाता है और भंडारी एवं छड़ीदार को नियमानुसार नगदी राशि से विदा किया जाता है और समाज के बीच में वर पक्ष द्वारा लाये करी लाडू और रोटी-भाजी को देना पड़ता है।
अगर किसी प्रकार लड़की या लड़का विधवा या विधुर हो गये हो तो लड़की-लड़का की इच्छा योग्य एवं परिवार के मन-पसंद से चूड़ी पहनाकर विवाह सम्पन्न करना चाहिये।
सामाजिक न्याय व्यवस्था :-
(क) लाठी लग्गा:- अगर अचानक कोई घटना हो गया है (लाठी लग्गा) है तो किसी को कहीं नहीं जाना चाहिए। अपने गुरू गद्दी, गुरू वंशज के गुरूद्वारा में 1 नारियल व 100 रूपये नगद राशि के साथ गुरू के चरणों में दण्डवत होकर अपनी गलती को अवगत करावें और क्षमा मांगकर आशिर्वाद प्राप्त करें। नारियल का प्रसाद व एक लोटा जल लेकर गुरू के भवन से लेकर अपने गांव तथा सबको बुलाकर भोजन खिलवें व लाये हुए जल को घर भवन में छिड़क्कर अमृत जल ग्रहण करें।
(ख) फूल परी (कुष्ठरोग):- अगर किसी को फूलपरी हो गया बच्चा हो या सियान तो गुरू गद्दी गुरू वंशज का दर्शन करके गुरू को अपना अपराध बताकर दण्डवत होकर क्षमा मांगें और 51 रूपये गुरू दक्षिणा अर्पित करें लोटा में जल भरकर अपने गांव वापस आवे और संत जनों को भोजन खिलावें भंडार में जल को मिला दें।
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