Wednesday, 16 March 2016

नामायण ग्रंथ की शिक्षा...


      यह सभी जानते हैं कि सत्य की हमेषा विजय होता है और सत्य ही मानव का आभूशण है, असत्य को त्याग कर सत्य को आत्मसात् करने में ही मानव जीवन की सार्थकता है। अज्ञानतावष् मनुवाद के कुटिल विचारों से ग्रसित होने के कारण मानव समाज का एक विषाल समुदाय अनेक वर्शों से आडम्बर युक्त धार्मिक रूढ़ीवाद का षिकार होते आया है। सामाजिक विशमताओं का जहर पीते, थोथा एवं नीरस जीवन जीने को बाध्य रहे। संत गुरूनानक, कबीर तथा रैदास आदि ने मानव समाज में व्याप्त अज्ञानता रूपी गहन अंधकार को मिटाने एवं उन्हें सत्य रूपी प्रकाष में लाकर खड़ा कराने के प्रयास में अपना अमूल्य जीवन समर्पित कर अमरत्व प्राप्त किये, उन्होंने जन-जन के हृदय में सत उपदेषों द्वारा सद्ज्ञान को प्रकाष मय दीप प्रज्वल्लित किये। आपस में प्रेमभाव का संचार कर निःस्वार्थ भावना से प्रेरित भाईचारे की भावनाओं से जीवन जीने के लिये मार्ग प्रषस्त किये। 
संत गुरूओं, महात्माओं के ज्ञान, उपदेषों, सीखों में मानव समाज का कल्याण एवं जीवन का अमरत्व निहित होता है, उनके पद चिन्हों का अनुसरण करने तथा उनके ज्ञान, उपदेषों को आचरण में व्यवहृत करने पर सहज ही सत्य का दर्षन हो जाता है, परम् पूज्य गुरू घासीदास जी ने अपने जीवन को सत्य की षोधन में लगाये रखा। विशम् परिस्थितियों में भी उन्होंने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा अंततः उन्होंने सत्य का दर्षन करने में सफलता प्राप्त किये। उनका कठोर त्याग, कठिन तपस्या, गहन षोध एवं दुर्गम साधना के फलस्वरूप ही मानव समाज में सतनाम धर्म का प्रादुर्भाव हुआ, उन्होंने जन-जन में ज्ञान के प्रकाष को फैलाते हुये सत्य के प्रति उनमें नवीन चेतना जागृत कर मानवता पर आधारित जाति विहीन समाज की स्थापना की जिसमें मानव समाज में समता पर आधारित सद्भाव एवं भाईचारे की भावनाओं का अभ्युदय हुआ। गिरौदपुर, भंडारपुरी, तेलासी, चटुआ और खड़वा धाम में आज भी सत्य का प्रमाण दृश्टव्य है। ये धाम हमें आत्मसात करने की प्रेरणा दे रहे हैं, सच्ची श्रद्धा एवं विष्वास से इन पवित्र धामों का दर्षन मात्र से प्राणियों की मनोकामना सिद्ध हो जाते हैं। 

यह सभी जानते हैं कि सत्य की हमेषा विजय होता है और सत्य ही मानव का आभूशण है, असत्य को त्याग कर सत्य को आत्मसात् करने में ही मानव जीवन की सार्थकता है। अज्ञानतावष् मनुवाद के कुटिल विचारों से ग्रसित होने के कारण मानव समाज का एक विषाल समुदाय अनेक वर्शों से आडम्बर युक्त धार्मिक रूढ़ीवाद का षिकार होते आया है। सामाजिक विशमताओं का जहर पीते, थोथा एवं नीरस जीवन जीने को बाध्य रहे। संत गुरूनानक, कबीर तथा रैदास आदि ने मानव समाज में व्याप्त अज्ञानता रूपी गहन अंधकार को मिटाने एवं उन्हें सत्य रूपी प्रकाष में लाकर खड़ा कराने के प्रयास में अपना अमूल्य जीवन समर्पित कर अमरत्व प्राप्त किये, उन्होंने जन-जन के हृदय में सत उपदेषों द्वारा सद्ज्ञान को प्रकाष मय दीप प्रज्वल्लित किये। आपस में प्रेमभाव का संचार कर निःस्वार्थ भावना से प्रेरित भाईचारे की भावनाओं से जीवन जीने के लिये मार्ग प्रषस्त किये। 
संत गुरूओं, महात्माओं के ज्ञान, उपदेषों, सीखों में मानव समाज का कल्याण एवं जीवन का अमरत्व निहित होता है, उनके पद चिन्हों का अनुसरण करने तथा उनके ज्ञान, उपदेषों को आचरण में व्यवहृत करने पर सहज ही सत्य का दर्षन हो जाता है, परम् पूज्य गुरू घासीदास जी ने अपने जीवन को सत्य की षोधन में लगाये रखा। विशम् परिस्थितियों में भी उन्होंने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा अंततः उन्होंने सत्य का दर्षन करने में सफलता प्राप्त किये। उनका कठोर त्याग, कठिन तपस्या, गहन षोध एवं दुर्गम साधना के फलस्वरूप ही मानव समाज में सतनाम धर्म का प्रादुर्भाव हुआ, उन्होंने जन-जन में ज्ञान के प्रकाष को फैलाते हुये सत्य के प्रति उनमें नवीन चेतना जागृत कर मानवता पर आधारित जाति विहीन समाज की स्थापना की जिसमें मानव समाज में समता पर आधारित सद्भाव एवं भाईचारे की भावनाओं का अभ्युदय हुआ। गिरौदपुर, भंडारपुरी, तेलासी, चटुआ और खड़वा धाम में आज भी सत्य का प्रमाण दृश्टव्य है। ये धाम हमें आत्मसात करने की प्रेरणा दे रहे हैं, सच्ची श्रद्धा एवं विष्वास से इन पवित्र धामों का दर्षन मात्र से प्राणियों की मनोकामना सिद्ध हो जाते हैं। 

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