एक भ्रम समाज में यह काम कर रहा है कि वर्ण व्यवस्था में छुआछुत के किटाणु विद्यमान है किन्तु ऐसा बिल्कुल नहीं है। मुस्लिम आक्रमणों के पूर्व हिन्दु समाज में वर्ण व्यवस्था तो थी किन्तु छुआछुत नहीं थी। शुद्र व अस्पृश्य एक नहीं अलग-अलग स्थिति है।
परिस्थितिवश अपवित्रता व जन्मना छुआछुत भिन्न है:-
दूसरा व्यक्तिगत व परिस्थितिवश छुआछुत एवं वर्गगत जन्मना छुआछुत इनमंे भी अंतर समझना आवश्यक है। दोनों को कभी-कभी एक समझ लिया जाता है। इस कारण भी बहुत भ्रम निर्माण होता है।
(क) परिस्थितिवश अपवित्रता:- जैसे प्रसूति अवस्था में माता अस्पृश्य होती है किन्तु यह काल समाप्त होने पर स्थिति सामान्य हो जाती है। जैसे - हृदय रोगियों के कमरे मेे जूते आदि पहन कर नहीं जाने दिया जाता, टी.बी. या अन्य संक्रामक रोगों में शेष लोगों से रोगी को अलग रहने की सलाह दी जाती है। आपरेशन के बाद बिना स्नान आदि किये डाॅक्टर अस्पृश्य जैसे ही रहते हैं। और भी अनेक उदाहरण हो सकते है किन्तु यह अस्पृश्यता अस्थाई होती है और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। यह हमारे चिंतन का विषय नहीं है।
(ख) समाजगत जन्मता छुआछुत:- यह वह स्थिति है जिसमें जन्म से ही कुछ लोग अस्पृश्य मान लिए जाते हैं। हमारे चिन्तन का विषय यही वर्गगत जन्मना छुआछुत है। जिसे सतनामियत नहीं मानता है। परम पूज्य गुरू घासीदास जी ने मानव समाज में व्याप्त उच-निच, छुआछुत की भावनाओं का पूरजोर विरोध किया और मनखे-मनखे एक समान का संदेश जन-जन तक पहुचाया। परमपूज्य गुरू घासीदास जी के सत् उपदेशों को मानने वाले सतनामी कहलाए जो आज भी सतनाम धर्म का पालन कर रहे हैं ।
सामाजिक विघटन का षड़यंत्र
आज अपने देश के सामने जो विभिन्न समस्याएं खड़ी है उनमें से एक धर्मान्तरण की है। सतनामी समाज के दुर्बल घटकों को बहला फुसलाकर अपने धर्म में ले जाने का यह सिलसिला प्रारंभ में इस्लाम ने और बाद में ईसाईयों ने इस देश मंे शुरू किया था। यह क्रम आज भी जारी है और ग्रामीण तथा वनांचलों में रहने वाले गरीब, निरक्षर तथा भोले-भाले बंधुओं का धर्मान्तरण कर उन्हें मुस्लिम या ईसाई बनाकर सतनामी समाज को कमजोर करने के प्रयास चल रहे हैं।
भारत देश में आजादी के पश्चात भी धन के प्रयोग से मिशन स्कूलों के माध्यम से या अन्य प्रकार से सतनामी समाज के दुर्बल, जनजाति घटकों का मतांन्तरण करने का उनका कार्य अधिक व्यापक रूप से आज भी चल रहा है। ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाये जा रहे मिशन स्कूल मतान्तरण के सबसे बड़े केन्द्र हैं। हिन्दुओं के धार्माचार्य तथा धर्म के प्रति घृणा का भाव निर्माण करना यह इन स्कूलों का प्रमुख कार्य है।
भारत में मतान्तरण के लिए ईसाई संगठनों ने स्कूल, कालेज, अस्पताल और अन्य सेवा प्रकल्पों का सहारा लिया और उसमें उनको काफी हद तक सफलता भी मिली लेकिन धीरे-धीरे इनकी उपयोगिता समाप्त हो गयी। इसके बाद भारत में मतान्तरण करने के लिए कुछ अन्य उपयों एवं तरीकों का अवलम्ब करने के लि चर्च के नेताओं ने ईसाइयत तथा चर्च को जीवित रखने और व्यापक करने हेतु एक नया सिद्धांत खोज निकाला और वह था ‘लिबरेशन थियोलाॅजी’ यानी मुक्ति दर्शन। भारत में बहुत बड़ी संख्या में ऐसा एक वर्ग है जो दलित नाम से पहचाना जाता है। ईसाई संस्थाएं तथा चर्च इन दलितों का मतान्तरण कर उन्हें भारत की मूल सामाजिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर से काटने का प्रयास कर रहे हैं। इन दलितों के बीच विभिन्न सेवा कार्य चलाकर उनको धन आदि का प्रलोभन देकर उनका मतान्तरण किया जा रहा है।
दलित समाज से जो मतान्तरित होकर ईसाई बने हैं ऐसे लोगों की भी चर्च उपेक्षा करता है। चर्च संगठनों के भीतर उनका वही स्थान है जो उनके मतान्तरण के पूर्व हिन्दु समाज में था। ईसाई मिशनरियों ने हिन्दु समाज में जाति प्रथा की आड़ में शोषण और उत्पीड़न का शोर मचाकर ऐसे दलित हिन्दुओं का मतान्तरण किया। ईसाइयत के बारे में यह दावा किया जाता है कि यह जाति आधारित पंथ नहीं है चर्च की नजर में सभी लोग समान हैं, कोई ऊंच-नीच नहीं परंतु यह भी सत्य है कि चर्च में अनुसूचित जाति के लोगों को दलित ईसाई के नाम से जाना जाता है। तथा उनके साथ सब प्रकार के भेदभाव भी किया जाता है।
ईसाइयत का मुक्ति दर्शन वास्तव में यह मुक्ति का मार्ग समाज को विखंडित करने का एक षड़यंत्र है। ये बताते है कि भारत एक राष्ट्र नहीं है और ना ही भारतीय समाज एकरस है। यहां 5249 संस्कृतियां है जिनकी हिन्दु संस्कृति की आक्रामकता से रक्षा होना बहुत जरूरी है। इसी षड़यंत्र के चलते पहले सिक्ख, बौद्ध व जैन मत और सतनाम पंथ को हिन्दु धर्म और संस्कृति से अलग कहा गया। सन् 1932 से दलितों की अलग गणना होने लगी और वनवासी अनुसूचित जाति को मूल निवासी करार दिया गया। जो भारत लाखों-करोड़ों वर्षों से एक समुदाय, एक संस्कृति, एक राष्ट्र है एक जनह है वहां उसे 5249 भागों में बांटकर चर्च संगठन हिन्दुत्व बनाम 5249 संस्कृतियों का संघर्ष खड़ा कर रहा है।
भारत में चलाये जा रहे व्यापक धर्म परिवर्तन या मतान्तरण के कार्य का एक ही उद्देश्य है भारत को पुनः विभाजित करना और एक संघ भारतीय समाज को विघटित करके अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देश का गुलाम बनाना ही है। हम इस बात को अच्छी प्रकार से समझे और इस षड़यंत्र को विफल बनाएं। इसी में सतनामी समाज का और समूची मानवता का कल्याण है।
बहुत अच्छी जानकारी दी गयी है.
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