Wednesday, 16 March 2016

सतनाम का पुनरूत्थान...


      परम् पूज्य गुरू घासीदास बाबा जी के द्वितीय सुपुत्र राजा गुरू बालकदास जी के सतनाम आंदोलन का असर इतना अधिक हुआ कि अंग्रेजो ने सन् १८२५ में पहली बार शिक्षा का द्वार हिन्दु धर्म में शुद्र कहे जाने वालो के लिये खोले। गुरू बालकदास जी के एकता और समरसता के आंदोलन से अंग्रेज प्रभावित होकर उन्हे राजा घोषित कर हांथी भेंट किये साथ ही अंग रक्षक रखने कि अनुमति भी दिये। शिक्षा के क्षेत्र में हुये इस परिवर्तीत कानून जिसका पुरोधा हमारे गुरू जी रहे हैं। साथीयो धन्य हैं जो हम ऐसे महान गुरू घासीदास जी के सतनाम धर्म अनुयायी है। आज भी अंग्रेजो द्वारा, गुरू बालकदास जी को दिये उपहार स्वरूप अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र सब भंडारपुरी धाम में जहाँ राजा गुरू निवास किया करते थे, वहाँ सुरक्षित रखा हुआ है, गुरू वंशज, गुरू बालदास जी के संरक्षण में। जिसे कभी भी जाकर देखा जा सकता है।
यह वही वस्त्र और शस्त्र है, जिसे अंग्रेजो ने सतनामी राजा गुरू बालकदास जी को उपहार में प्रदान किये थे, जिसे गुरू वंशज प्रत्येक वर्ष में एक बार धारण करके संतो के सामने उपस्थित होते हैं ताकि संत समाज को राजा गुरू बालकदास जी द्वारा किये अदम्य और अनुकरणीय कार्य को याद दिलाया जा सके। जिससे समाज में नई जोश और नई चेतना का संचार होते रहे...
समाज में ऐसी भी मान्यताएं है कि नारलौन में सतनामी सुमता, शक्ति और संपति के नाम से विख्यात थे तथा नारलौन से छत्तीसगढ़ आने के समय गुण, ज्ञान, अर्थ और धर्म से परिपूर्ण थे। तथा छत्तीसगढ़ में सतनामी, अन्न-धन्न-संपदा के नाम में मशहुर थे। जिसका जीता जागता उदाहरण है कि अकेले पुरानी मुंगेली तहसील में जो वर्तमान में चार तहसीलो में विभाजित है, मुंगेली, पंडरिया, लोरमी तथा पथरिया (अब मुंगेली जिला बन चुका है) के अंतर्गत २८० मालगुजार तथा २६२ ठेकेदार मालगुजार थे। कुल ५४२ सतनामी मालगुजार का सरकारी रिकार्ड प्रमाणित करता है । (सतनामीयो के स्थिति का आकलन, धार्मिक संस्कृति का आकलन, रिति-रिवाज का आकलन इन क्षेत्रो में निवासरत सतनामीयो के बारे में जाने-समझे बिना कदापि सार्थक नही हो पायेगा) 
मेरा मानना है कि समाज के मेला समिती को गिरौदपुरी धाम में सतनाम धर्म के विपरित जितना भी क्रिया कलाप होता है, उसे रोकने के लिये हर संभव प्रयासरत रहना चाहिये। जैसे-
1. भोजनालयों में सिर्फ शुद्ध शाकाहारी भोजन ही बनाये जाये, इसके लिये उचित दिशा निर्देश बनायें ।
2. जितने भी दुकान लगाये जातें हैं उन्हे कड़ी निर्देश दिया जाय कि, किसी भी तरह के नशीले पदार्थ की बिक्री न करें ।
3. जो श्रद्धालू भुंईया नापते हुये गुरू दरबार तक जाते हैं, उनके लिये अलग से रास्ते बनाये जाने चाहिये, कम से कम तपोभूमि प्रवेशद्वार से लेकर मंदिर प्रांगण तक बेरीगेट लगाकर भुंईया नापने वाले भक्तो के लिये सुरक्षित पथ बनाये जायें ।
4. साफ सफाई का उचित प्रबंध करें ।
5. सतनामी एवम सतनाम धर्म के सभी धार्मिक और सामाजिक मान्यताओ के बारे में सद्-प्रवचन का आयोजन किया जाना चाहिये ।
6. गिरौदपुरी ग्राम में जहाँ गुरूजी का अवतार हुआ है उस पवित्र स्थान को गुरू स्मारक के रूप में समाज को समर्पित करें ।
7. पूर्ण रूप से ब्यवस्थित और बिना किसी परेशानी के मेला का सफल आयोजन हो इसके लिये पुलिस बल की विशेष ब्यवस्था जगह जगह पर किया जाय ।
आशा है मेला को संचालित करने वाले सभी प्रमुख वरिष्ट जन उपर लिखे बिन्दुओ पर विशेष ध्यान देंगे और सतनाम धर्म के साथ गुरूजी के अमर संदेशों को जन जन तक पहुँचायेंगे....!
सतनामी एवम् सतनाम धर्म 
सत से तात्पर्य मुख्य कार्य और नामी से तात्पर्य पहचान। जिस तरह लोहे के कार्य करने वाले को लुहार, कपड़ा धोने के कार्य करने वाले को धोबी, रखवाली करने वाला को रखवाला, गाना गाने वाले को गायक, नृत्य करने वाले को नृतक, नशा करने वाले को नशेड़ी, शराब पिने वाले को शराबी, पोथी पुराण के ज्ञानी को पंडित, राज करने वाले को राजा, सेवा करने वाले को सेवक, तपस्या करने वाले को तपस्वी, ठीक उसी तरह ‘सतकर्म‘ करने वाले को ‘सतनामी‘ कहते हैं।
सतनामी ना ही कोई जाति है और नही कोई धर्म, वह तो सतनाम के मानने वालो की पहचान है जिसे आज सतनामी जाति के नाम से जाना जाता है। सतनामी वह है जिसका कर्म सत्य पर आधारित हो और जो सतनाम धर्म को मानता हो। सतनाम धर्म में छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच, छुआ-छुत का कोई स्थान नही है । सतनाम धर्म मानवता वाद पर आधारित है । बाबा गुरू घासीदास जी ने सतनाम धर्म का ब्याख्या इस रूप में किये हैं रू


‘मानव-मानव एक समान‘
मनखे मनखे एक ये, नइये कछु के भेद ।  
जउन धरम ह मनखे ल एक मानीस, उही धरम ह नेक ।।



सतनामी: 
हमारा समाज अंग्रेजों एवं मुगलों के प्रभाव व दबाव के कारन ही कई मत व पंथ में बट गया जिसे कुछ इस प्रकार से समझ सकते है। 

यह निर्गुण निराकार पंथ पर गुरू घासीदास बाबा जी द्वारा बताये सात उपदेशो पर आस्था रखते हैं।
1. दोपहर बाद मवेशियो को हल में नही फांदते।
2. बांझ भैस व गाय से जुताई नही करते।
3. बछिया, पड़वा रहित गाय भैंस का दूध नही पिते।
4. चैका आरती मंगल गीत दशगात्र के समय प्रयोग में लाते हैं।
5. सतनामीयो का झंडा सफेद और चैकोना होता है।
6. जैतखाम, गुरूगद्दी का पूजा करते हैं।
7. भंडारी और साटीदार की मान्यता सतनामी गांवो में अनिवार्य है।
धार्मिक और सामाजिक कार्यो में अगर किसी ब्यक्ति द्वारा अनियमितता पाया जाता है तो ग्राम वासी या फिर गुरू वंश के लोग दंडति करते हैं। हर प्रकार के मांसाहार और धूम्रपान सर्वथा वर्जित है। मृतक भोज, सामाजिक और धार्मिक कार्यो में एक साथ भोजन करना और अंतिम ब्यक्ति के भोजन समाप्त होने पर ही उठना अनिवार्य है ।
रामनामी:
यह निर्गुण निराकार पंथ है जिसे पुज्य श्री परसुराम जी द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है इनके अनुयायी अपने षरीर में रामराम गुदवाते (टैटू बनाते) है और प्रभु राम के रूप के स्थान पर उनके नाम पर आस्था रखते हैं और नाम का ही गुणगान करते है। प्रायः 3 प्रकार के रामनामी समाज में मिलते है जिन्हें एकांगी रामराम, मस्तांग रामराम और सर्वांग रामराम कहा जाता है। ये भी जैतखाम का निर्माण करते है लेकिन इनके स्तंभ में रामराम लिखा जाता है। रामनामिओं के वस्त्र में रामराम लिखा जाता है तथा अपने घर में भी ये रामराम लिखाते है। वैसे तो इनकी रहन सहन सतनामियों से भिन्न है लेकिन इनके अधिकांष रिती रिवाज सतनामिओं से मिलते जुलते है फर्क सिर्फ इतना है कि ये अपने षरीर और वस्त्र पर रामराम लिखाते है, जबकी सतनामी राम के नाम से ही चीढने लगते है।
एकांगी रामराम: उन्हे कहा जाता है जिनके षरीर के किसी एक अंग पर रामराम लिखा होता है।  
मस्तांग रामराम: उन्हे कहा जाता है जिनके मस्तक में रामराम लिख होता है।
सर्वांग रामराम: उन्हे कहा जाता है जिनके पूरे षरीर में रामराम लिखा होता है, इन्हे पखषिख रामराम भी कहा जाता है।
आज के समय में कोई अपने षरीर में रामराम नही लिखा रहे है और बहुत से लोग अपने आप को सतनाम से षामील कर लिये है और गुरू घासीदास जी के संदेषों को मानने लगे है।

सूर्यवंशी: 
सूर्यवंशी कहे जाने वाले लोग पहले रोहिदास, बाद में रविदास मंडल और बाद में तथा अब सूर्यवंशी कहलाते हैं। ये शक्ति और त्रिशूल आदि देवी देवताओ की पूजा करते हैं। शाकाहार नही होते और सतनामीयों के गुरू प्रथा को नही मानते तथा इनमें भंडारी, साटीदार नही होते ये मृतक भोज में भोजन एक साथ करने और एक साथ उठने की प्रथा को नही मानते। ये अपने को स्वर्ण हिन्दुओ के सारी रीति-रिवाजो और मूर्ती पूजा करने, और देवताओ को बलि चढ़ाने पर विश्वास करते हैं। जैतखाम, गुरूगद्दी, चैका आदि को नही मानते थे, लेकिन आजकल सूर्यवंशी लोग अपने आपको सतनामी कहलाना पसंद करने लगे है और जैतखाम, पंथी पार्टी आदि को अपनाने लगे हैं ।
देशहा सूर्यवशी और कनौजिया सूर्यवंशी:
इनके रिती-रिवाज और परमंपरा अन्य हिन्दुओ से मेल खाते हैं ये अधिकांशतहः शिव के उपासक हैं और ये पीथमपुर मेला जाते है और वहां इनका मंदिर भी है। इनका रिवाज और सूर्यवंशीयों का रिवाजों में काफी अंतर है, ये लोग जैतखाम को अपने गांव-घरो में नही रखते और ये लोग अपने गंावो में अक्सर रहस बेड़ा बनाते है ।
अब इन तीनो प्रकार के लोगो में निकटता आई है जिसका प्रमुख कारण गिरौदपुरी मेला में इन सभी समुदायों का आगमन होना है पहले सिर्फ और सिर्फ सतनामी लोग ही इस मेला में आते थे लेकिन आज कल ये लोग भी आने लगे हैं और अपने आपको सूर्यवंशी कहलाना छोड़कर सतनामी कहलाना शुरू कर दिये हैं यह सतनामी समाज का बड़प्पन है कि इन लोगो के रिती-रिवाज अलग होने के बाद भी इन लोगो से आपसी मेल-जोल बना रहें हैं।


सतनाम हिन्दू धर्म है यह सामाजिक रिती-रिवाजों और मान्यताओं से समझ मे आता है जैसे-ं
सतनाम धर्म को किसी अन्य धर्म के साखा के रूप में कहीं भी और कभी भी प्रचारित नही किया गया है, बल्कि इसे हिन्दू धर्म की निर्गुण षाखा ही माना गया है।
जैतखाम का स्थापना सामाजिक रूप से उन स्थानो पर कराया जाना चाहिये, जहाँ सामाजिक कार्यक्रम सुगमता पूर्वक संपंन कराया जा सके और स्थापित जैतखाम का नित्य पूजा अर्चना करने का उचित माध्यम सुगमता से उपलब्ध हो साथ ही उचित देख रेख का प्रबंध भी हो किया जाये।
समाज में या किसी भी सामाजिक एवं धार्मिक कार्यक्रम में मांसाहार व नशा सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिये उचित रूप रेखा तैयार करें और दोषियों को सामाजिक दंड देने का उचित नियम बनाया जाये।
जयंती के कार्यक्रम में किसी भी अन्य तरह के नाच गान का आयोजन नही किया जाना चाहिये, सिर्फ और सिर्फ सतनाम धर्म के अनुरूप चैका-पंथी, सत्संग कार्यक्रम का ही आयोजन किया जाय इसका निर्धारण हेतु उचित कदम उठाया जाये।
समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वाले सामाजिक संगठन, ब्यक्ति, महिला, प्रतिभावान छात्र-छात्राओ का उचित सम्मान करने के लिये प्रयास करें ताकि अन्यों का भी मनोबल बढ़ें।
समाज के धार्मिक स्थानों में जहाँ मेला का आयोजन होता है, वहाँ कार्यक्रम को सफलता पूर्वक संपंन कराने में सभी अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करें।
समयानुकुल शिक्षा का उचित प्रचार प्रसार करना क्योकि देखने में आता है कि आज शिक्षा को मात्र सरकारी नौकरी के लिये और इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करने तक ही सीमीत माना जाता रहा है, जबकी शिक्षा रोजगारोन्मुखी और सर्वागीण विकास के लिये है इस बात की ओर ध्यान देना अनिवार्य है।
हमें गर्व है कि हम ऐसे महान कुल में जनम लिये जहाँ गुरू घासीदास बाबा जी के वंशज आज भी विद्यमान हैं। सतनामी समाज ‘गुरू प्रधान‘ समाज है, और रहेगा। हालांकि वर्तमान में अनेक चुनौतियां हमारे सामने है फिर भी समाज में एकरूपता के लिये इसे व्यवहार मे लाने की नितांत आवष्यकता है।
अभिवादन में जय सतनाम कहें।
धर्म के प्रतिक रूप में जैतखाम को स्थान दें।
धर्म ध्वजा के रूप में सफेद चैकोर झंडा ही उपयोग में लाये।
धार्मिक पूजा के लिये चैका-आरती व पंथी को प्राथमीकता दें। 
घर एवं मंदिर में गुरूगद्दी का ही स्थापना करें।
अपने शरीर में धारण करने हेतु कंठी, जनेऊ का ही प्रयोग करें।

1 comment:

  1. Bahut sunder aur gyanvardhak lekh hai...

    Chhattisgarh ki samasik sanskriti ko darshata hai...

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