ऐतिहासिक प्रणाम के अनुसार मानव सभ्यता का विकास की शुरूआत 5000 ई.पू. से हुई जो कालांतर में 3000 ई.पू. से विकसीत अवस्था में पहुंच चुकी थी जिसे सिंधु घाटी की सभ्यता कहा जाता है। उस समय सुमेरियन सभ्यता एवं हड़प्पा कालिन सभ्यता में विभिन्न संस्कृतियों का प्रचलन था जिसमें सतपंथ संस्कृति का प्रचलन प्रमुख रूप से हुआ। उस काल में सतपंथ के अनुयायीयों के द्वारा सतमार्ग पर चलना, परमार्थ, निःस्वार्थ, सत्य-अहिंसा, सरलता, सहजता, सात्विक जीवन शैली एवं सतनाम का जाप किया जाता था। सतनाम पंथ संस्कृति का प्रचलन मानव सृष्टि की रचना से आज तक विभिन्न कालों से गुजरता हुआ विभिन्न राज्य राजाओं, ऋषियों मुनियांे, तपस्वी, ज्ञानी, त्यागी एवं संत जनांे के माध्यम से चलता आ रहा है एवं अनेक कष्टों को सहते हुए सतमार्ग का अनुसरण करते आ रहे है तथा संपतंथ पर चलते हुए अमरत्व प्राप्त कर रहे हैं।
इसी कड़ी में परम पुज्य गुरू घासीदास जी छत्तीसगढ़ की धरती पर अवतरित ऐसे युग-पुरूष हैं, जिन्होेंने समाज में नई चेतना का उद्भव कर सामाजिक क्रांति लाये। सामाजिक असमानता, आर्थिक शोषण, अत्याचार, छुआछुत, नारी उत्पीड़न आदि के विरूद्ध उन्होंने सन् 1820 से 1830 तक भारी आंदोलन चलाया उनके इस सतनाम आंदोलन में लगभग 4 लाख से अधिक लोग शामिल हो गये तथा सतनाम धर्म का पुर्नस्थापना किया। जो कि औरंगजेब के शासन काल में मृतप्राय हो चुका था। सतनाम धर्म में छत्तीसगढ़ क्षेत्र के दबे-कुचले, पीडि़त मानव समाज बड़ी संख्या में शामिल हुए यहीं आगे चलकर सतनाम धर्म पालन करते हुए आज भी इस धर्म को उजागर किये हुए हैं। इस धर्म के अनुयायियों का विस्तार छत्तीसगढ़ के बाहर नहीं होने का अनेकों कारण नजर आते हैं। जैसे-
01. तत्कालीन इतिहासकार, साहित्यकार, कवि एवं लेखकों ने गुरू घासीदास के इस सतनाम आंदोलन को लेखनीबद्ध नहीं किया अथवा जानबुझकर प्रचार-प्रसार नहीं होने दिया।
02. गुरू घासीदास जी स्वयं स्कूली शिक्षा से वंचित रहे।
03. तत्कालीन राजा महाराजाओं का दबाव तथा वर्चस्व का कामम होना।
04. गुरू घासीदास जी का नेतृत्व बर्दास्त नहीं करना।
05. गुरू घासीदास जी का आंदोलन तत्कालीन सामाजिक असमानता (कुरितियों) के खिलाफ था, आदि अनेक कारणों से उनका यह आंदोलन सिमित रहा।
संतनामी वंशावली:-
आदि काल ते है सतपंथा । सत के कबहु होय न अंता ।।
(नामामण ग्रंथ)
सत्रहवीं शताब्दी में संत पवित्रदास एवं उनके प्रमुख शिष्य एवं उनके अनुयायियों ने मुगल शासक औरंगजेब के पंथ-विरोधी एवं जबरन इस्लाम धर्म अपनाने हेतु गतिविधियों से तंग आकर सन् 1672 ई. में उसके विरूद्ध आंदोलन शुरू कर दिया। जो भारत के इतिहास में ‘‘सतनामी विद्रोह’’ के नाम से जाना जाता है।
औरंगजेब के दमनकारी नीति से त्रस्त होकर सतनामियों का विशाल समुह उत्तर भारत को छोड़कर बिहार, उड़ीसा, कालाहांडी से होते हुए छत्तीसगढ़ में आकर बस गये।
छत्तीसगढ़ के वनांचल एवं महानदी के आस-पास के क्षेत्रों में सतखोजन दास के वंशज शगुनदास, दयालदास, मेदनीदास भटगांव में निवास कर रहे थे। उस समय छत्तीसगढ़ में सामंति राज व्यवस्था, जमीदारी प्रथा लागु था। बाद में मेदनीदास अपनी पत्नि मायावती एवं पुत्र महंगुदास को लेकर गिरौदपुरी में आकर बस गये। यहीं पर परमपूज्य गुरू घासीदास जी का जन्म हुआ।
मेदनीदास और मायावती भटगांव से आकर गिरौद में बस गये। उनके पुत्र हुए महंगुदास जी उनका विवाह मड़वा गांव में पुराईन गोत्र की युवती अमरौतिन से हुआ महंगुदास एवं अमरौतिन माता के गोद से ननकु नाम का पुत्र हुआ (सन् 1750) में दुसरा पुत्र मनकुदास जी का जन्म सन् 1753 में तथा तिसरे पुत्र गुरू घासीदास जी का जन्म 1756 में हुआ। ननकुदास जी बाल्यकाल में ही सत्य में विलिन हो गये अर्थात मनकु और घासीदास दो पुत्र का वंश विस्तार जग प्रमाणित और सुरक्षित है। मनकुदास जी का विवाह ग्राम दाऊबंधान थाना व तहसील बिलाईगढ़ के कन्या ज्ञानमति के साथ हुआ था। जिसमें 23 जुलाई 1788 में पुत्र बंधनदास का जन्म हुआ।
बंधनदास का विवाह ग्राम नरधा के (पीरती) के साथ हुआ उनके संयोग से छह पुत्र का जन्म हआ जो निम्न हैं -
1. झिंगुटदास जन्म सन् 1808 इनकी पत्नि बोधिन माता।
2. आगरदास का जन्म सन् 1811 इनकी पत्नि आरती माता।
3. अंजोरदास का जन्म सन् 1815 इनकी पत्नि माता सुन्दरमति।
4. खुलाऊदास का जन्म सन् 1818 इनकी पत्नि मिलउतीन माता।
5. धनीदास का जन्म सन 1822 इनकी पत्नि सुखीन माता।
6. बोधनदास का जन्म सन् 1825 इनकी पत्नि बद्रीका माता।
झिंगुटदास के पुत्र सरधा का जन्म 1825 गिरौद में हुआ। उनका वंश विस्तार वर्तमान में सिर्री (पामगढ़) में निवासरत है।
अंजोरदास के 2 पुत्र हुए 1834 में बरखंड़ी (दर्राहा) तथा दुसरा सन् 1836 में कालिदास का जन्म हुआ। वर्तमान में बरखंड़ी का वंश ग्राम सेमरा (नवागढ़) में एवं कालिदास जी का वंश ग्राम भेड़ीकोन्हा, गोईदबंद, सलिहा, खैरझिटी में निवासरत है।
आगरदास के चार पुत्र हुए- 1) गंगाराम जन्म 1830 2) करिया दर्राहा जन्म 1832 3) अंतदास दर्राहा जन्म 1835 4) दर्शनदास छोटे दर्राहा का जन्म सन 1838 में हुआ ये लोग सन् 1845 को गिरौद (दर्रा) छोड़कर ग्राम सिर्री (पामगढ़) और मुड़पार में आकर बस गये।
बोधनदास से एक पुत्र महलदास का जन्म हुआ।
संत खुलाऊदास के एक पुत्र हुए सन 1852 ई. में जिनका नाम घसियादास रखा गया।
वर्तमान में संत पिरोहिलदास जी ग्राम सिर्री, पोस्ट ससहा, व्हाया-पामगढ़ पिन नं. 495553 जिला- जांजगीर-चांपा में निवास करते हैं और सत्संग, धर्म प्रचार-प्रसार एवं गुरूवाणी संत उपदेश आमजनों को देते रहते हैं।
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