ओम जय घासीदास हरे, साहेब जै घासीदास हरे।
माया असत यम बंधन छोरत, हँसाहि पार करे।। ओम जय.....
(1) सत सुमिरत सुख होवै, पाप भगे तन का। साहेब.....
दुख दरिद्रो मिटावै, भरम मिटे मनका।। ओम जय.....
(2) सतगुरू पूर्ण अगोचर, घट घट के बासी। साहेब.....
काम क्रोध मद हरता, काटे यम फासी।। ओम जय.....
(3) सत्य पुरूश पुरूशोत्तम तुमहि, अगजगके स्वामी। साहेब.....
भाव भक्ति पहिचानो सबके, तुम अन्तर्यामी।। ओम जय.....
(4) अलख पुरूश निर्वाण अगम गति, महिमा न जानी परे। साहेब .....
साधक संत सुजान भक्तजन, निषि दिन ध्यान धरे।। ओम जय.....
(5) निराकार ओंकार निरक्षर, अक्षर रूप गहे। साहेब.....
जन मन रंजन खल दल गंजन, नाम निरंजन दे।। ओम जय.....
(6) कलिमल अघदलदलन दयानिधी, सतपथ प्रकट करे। साहेब.....
सुक्ष्म वेदाचार्य ग्यानवपु, दलितोद्धार करे।। ओम जय.....
(7) सतखोजी सतलोक निवासी, सत्य संदेष कहे। साहेब.....
सत्य पुरूश के अंष रूप तुम, असत से दूर रहे।। ओम जय.....
ओम जय घासीदास हरे, साहेब जै घासीदास हरे।
माया असत यम बंधन छोरत, हँसाहि पार करे।। ओम जय.....
Satnam ko manne walo is Arti me om ji ........hare kyu aa Raha hai
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